Bechain Saawan
		घनघोर सी घटा छाई थी,
	
		उमड़ रहे थे, घुमड़ रहे थे बादल..
	
		कुछ अजीब सी अनमनी सी पवन..
	
		डोल रही थी बिन दिशा के...
	
		कुछ हलचल हुई मेरे अंतर्मन में भी..
	
		लगा कहीं दूर कोई अपना याद कर रहा होगा..
	
		ये तूफ़ान सा संकेत है..
	
		किसी अपने की पीर का..
	
		गगन बस सिमट कर काले साए में.
	
		रंग बदल रहा था..
	
		बस यही लग रहा था कि..
	
		कैसा सावन है ये?
	
		प्यास नहीं बुझ रही शायद धरती की  भी...
	
		आवाज़ आ रही थी कही से..
	
		दिख नहीं रहा था कोई भी धुंध में..
	
		चिंता बढे ही जा रही थी कि
	
		कैसा मुश्किल मोड़ है ये..?
	
		ह्रदय से निकली एक अनूठी वाणी..
	
		और उसमे छुपी एक प्रार्थना...
	
		कि तृष्णा बुझे जल्द ही धरती की..
	
		और हर वेदना मिट जाये मेरे उस अपने की...
	
		राहत मिली तभी अचानक जब देखा .. 
	
		थम गया गुस्सा मौसम का...
	
		और छट गए काले मेघ ..
	
		अजब कुदरत के करिश्मे है
	
		अजब है उसके खेल....
	
		अभी तो धमका रहा था आकाश ...
	
		और अब चुप्पी छाई चारो ओर..
	
		एक सुकून की शांति है ..
	
		मिटटी संग घुलती उस अपने की पीड़ा की....
	
		मौसम थमते देख  विश्वास हो चला ..
	
		अब शायद उसे भी चैन होगा..