Ghazal 3

 
इतनी बड़ी बात वो यूँ आसानी से कह गया..
हर हिस्सा मेरे ज़हन का बस देखता रह गया...
 
दिल में नफरत भी थी और गुबार भी, मगर...
उसका सारा गुस्सा बस मेरी आँखों से बह गया..
 
हमारा दिल वाकिफ़ है इन बदलती फितरतों से..
इस बार भी बिन बोले ये अज़ीयत सह गया..
 
मशहूर तो हुआ वो साजिशें कर के तमाम..
पर दिल की बाज़ी में पीछे ही रह गया...
 
हुरमत है हम मे भी कुछ बाकी अभी...
चुप खड़े रहे हम, वो पैहम सब कह गया...
 
साफ़ ज़ाहिर है उसकी सारी हरकतों से हमें...
हमारी याद का एक कतरा उसमें बाकी रह गया..
 
रंजिशें लाख हैं इस ज़माने के हर रिश्ते में...
न जाने क्यूँ नाम-ए-इश्क ही बदनाम रह गया...
 
 
 
 
 
 
 
 
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